Friday 6 January 2017

बैंककर्मियों के लिए नोटबंदी बना 'पाइल्स', दर्द किसे बताएं-

बैंककर्मियों के लिए नोटबंदी बना 'पाइल्स', दर्द किसे बताएं-

भाई नोटबंदी के 50 दिन बीत गए हैं, हाँ भाई उससे भी ज्यादा दिन हो गए हैं पर अभी तक पिछऊटा का घाव बन गया है. यह बात बड़े बिजसनेस को नहीं समझ आएगी काहे की उनके काम तो ऊपर से ही हो जाता है, चाहे वेस्टर्न कमोड की तरह. लाइन में लगाने की और कुछ जरुरत नहीं. आम लोग थोड़े ही है जो की लाइन में लगकर सरकार को कोसेंगे, कोसो-कोसो दूर से. उनके काम तो बन जाता है फ़ोन पर कोसो-कोसो दूर से. सही बोला ना की नहीं बोला, सही क्या गलत क्या जो मन में आया बोलो काहे की सरकार भी तो बस बोलती जा रही है. 

लेकिन इस नोटबंदी का दर्द तो बैंककर्मी ही बता सकता है. हम सब तो बस कभी सरकार तो कभी बैंक वालों की धज्जिया उड़ाने में लगे रहते हैं. बस अब हमको भी मन की बात की आदत लग गई है. लेकिन  सुनेगा जो कि नोटबंदी में हमारे सरकार के लिए रात भर काम किये, इनकी तो कोई नही सुनेगा, यहाँ तक की जब रात में घर गए तो बीवी ने भी उल्टा सुना दिया और बच्चों की छोड़ो उनका तो आदत है बोलना , जन्मसिद्ध अधिकार. लेकिन इनको महसूस किया जा सकता है.

इनका दर्द वाकई में किसी बवासीर यानि की पाइल्स से कम नहीं हैं. क्योंकि यह सब अपना दर्द चाह कर भी बयां नहीं कर सकते क्योंकि पाइल्स की तरह इसका भी कोई पुख्ता इलाज़ नहीं हैं दीवारों हक़ीम की नशीहत फ्री में मिल जाएगी, यह बात अलग है. इनका दर्द भी फेसबुक पर बयां हुआ पर इलाज़ इसका क्या हुआ? आप तो जानते ही है! और यह दर्द बयां कर के भी क्या हासिल कर लेंगे क्योंकि सरकार को काम चाहिए और हमको चाहिए  नोट और वह भी सौ टकिया. तो इनको सुबह से रात तक बैठने से तो अपच तो हो गया ही होगा बिलकुल ब्लैक नोट की तरह बाहर भी आ रहा होगा, तो बेहतर होगा की इलाज कराये क्योंकि पाइल्स का जन्म यहीं से होता है. हो सके तो नोटबंदी और सेहत दोनों का ख्याल रखें क्योंकि अगर किसी ने बैंक में घपला किया या फिर सेहत बिगड़ गई तो फिर आप कुर्सी पर बैठने के काबिल नहीं रहोगे!