Thursday 10 March 2016

सामान्य जीवनशैली से ही बचेगा पर्यावरण -


" साइंस एक्सप्रेस" इस बार विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन की समस्या को लेकर पूरे देश में भ्रमण कर रहा है क्योंकि बढते प्रदूषण ने प्रकृति के अंदर विकृति ला दिया है. जिसके कारण हम आए दिनों बाढ, सुखाङ, अम्लीय वर्षा, बदन जलाती धूप व असहनीय ठंड इत्यादि से परेशान हैं और इस तरह के असमय बदलते जलवायु ने हमारे सामान्य जिंदगी को असहनीय बीमारियों से ग्रस्त कर दिया है और आए दिन हमारा सामना नए - नए रोगों से हो रहा है. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में हम साधारण जन - जीवन व्यतीत कर रहे हैं? खुद के ही लाइफ स्टाइल को देखिये जवाब मिल जाएगा क्योंकि हमारी सुबह की शुरुआत केमिकल के साथ होती है और मच्छर कवाइल के साथ सो रहे हैं जबकि हम भलीभाँति यह जानते हैं कि रसायनिक चीजें खतरनाक है हमारे लिए. हम दिनों - दिन अपनी जिंदगी को इतना फैशनेबल व आरामदेह बना दिए हैं कि हम से दातुन भी नहीं हो पा रहा हैं जबकि नीम - बबूल के नाम पर रसायन उपयोग कर रहे हैं और यहां तक कि शर्बत के बजाय कोल्ड ड्रिंक पी रहे हैं जिसको बनाने के लिए हम शुध्द पानी को बेहिसाब बर्बाद करते हैं यानी कि एक लीटर कोल्ड ड्रिंक के लिए लगभग दस लीटर शुध्द जल को प्रदूषित कर के नदी में मिला देते हैं तो सोंचिए जरा क्या यह सही है? अभी हाल ही में भारत सरकार ने मुंबई में हरे बगीचे को काट कर हवाई अड्डा बनाने का आदेश दिया है और भी प्रतिदिन हम ना जाने कितने प्राकृतिक मित्रों को उद्योग में झोंक रहे हैं जबकि हमारे पास अन्य बंजर भूमि भी है लेकिन सरकार को भी यह सोचना चाहिए कि एक तरफ वो प्रकृति के बचाव के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं और दुसरी तरफ प्राकृतिक के खिलाफ फैसले ले रही हैं तो इसका प्रभाव जनता पर नकारात्मक असर डालेगा क्योंकि सामान्य जन तो सरकारी क्रिया - कलाप के अनुपालक है. खैर! दोषारोपण तो हम वर्षों से करते आ रहे हैं लेकिन अब वक्त आ गया है एकजुट होकर समाधान निकालने का ताकि बढते प्राकृतिक आपदाओं को रोका जा सके. भारत सरकार के द्वारा चलाई जा रही " साइंस एक्सप्रेस" जो कि हमें कार्टून, चित्र व माॅडल के जरिए यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आधुनिक युग को सुसज्जित व स्वस्थ्य रखना है तो हमें प्राकृतिक सौंदर्य को बरकरार रखना होगा. यह प्रकृति हमें बिना किसी शर्त के फ्री में वायु, जल व भोजन देकर हमारे जीवन को जीवित रखती हैं तो फिर हम इस परोपकार के बदले विनाशकारी तोहफा क्यों दे जो कि सजीवों के पक्ष में  नहीं है. एक बात तो यह साबित हो चुका है कि जैसे - जैसे हम आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे - वैसे जघन्य समस्याओं से उलझते जा रहें हैं तो फिर अब हमें बिना विलंब के अपने विवेक को जगाकर इससे बचने का अथक प्रयास शुरू करना चाहिए क्योंकि यदि हम अपने आसपास कचङे ना फैलाएं तो हमें मक्खी - मच्छर मारने के लिए रसायन का प्रयोग नहीं करना पड़ेगा, यदि हम शर्बत बना कर पीने लगे तो फिर मीठा जहर नहीं पीना पङेगा, यदि पैदल चलना भी सिख जाए तो फिर धुआं पीना नहीं पङेगा व यदि सिगरेट, दारू पीना छोङ कर तनाव मुक्ति के लिए योगा अपनाएँ तो कैंसर से मरना नहीं पङेगा. इस तरह यदि हम केवल अपने आदतों में चेतना जगा दे तो प्रदूषण को मिटाना संभव है नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपने आलीशान सुरक्षापूर्णं मकान में रहने के बावजूद भी बढते कार्बन डाई आॅक्साइड के कारण जल मग्न हो जाए या फिर पराबैंगनी किरणों से जल कर राख हो जाए तो फिर आप खुद ही सोचिये कि क्या वाकई में यही आधुनिकता हैं जो हमें अकाल मृत्यु के ओर धकेल रहीं हैं!